Thursday, April 2, 2009

लक्ष्मण रेखा पार नहीं कर पाए कीवी


नेपियर टेस्ट के तीसरे दिन के आखिर में जब एक प्रैस कॉफ्रैंन्स में वीवीएस लक्ष्मण से पूछा गया कि क्या भारत इस टेस्ट को बचा पाएगा... उनका जवाब आया “जी बिल्कुल,

निश्चित तौर पर” ……दो दिन बाद मैच के आखिरी दिन लक्ष्मण भारत की साख बचाने के लिए क्रीज पर पहुंचे। सबको उनसे एक बेहद स्पेशल पारी की उम्मीद थी। लक्ष्मण आए और छा गए। उन्होंने अपने शानदार शॉट सेलेक्शन के जरिए न्यूजीलैंड के गेंदबाजों को चैन की सांस भी नसीब नहीं होने दी। नेपियर में जमाया गया उनका 14वां टेस्ट शतक एक बार फिर साबित करता है कि उनमें अभी काफी दमखम बाकी है।

लक्ष्मण की इस शानदार पारी के चलते भारत दूसरे टेस्‍ट मैच को ड्रॉ करा पाने में सफल रहा है। लक्ष्मण के अलावा गौतम गंभीर की 137 रनों की मैराथन पारी को भी नहीं भुलाया जा सकता। लेकिन गंभीर के साथ-साथ टीम के दिग्‍गज खिलाडि़यों ने जो प्रदर्शन किया, उसे भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। खासतौर पर वीवीएस लक्ष्‍मण की 124 रनों की नाबाद पारी को जिन्‍होंने अंत तक हार नहीं मानी। उनकी ये पारी साल 2001 के कोलकाता टेस्ट की याद दिलाती है, जब ऑस्‍ट्रेलिया के 445 रनों के दबाव में भारत की पहली पारी मात्र 171 रनों पर सिमट जाती है। तब सिर्फ वीवीएस लक्ष्‍मण ही एकमात्र ऐसे बल्‍लेबाज थे, जिन्‍होंने 59 रनों की पारी खेली। खराब बल्‍लेबाजी की बदौलत भारत को फॉलोऑन झेलना पड़ा। लेकिन दूसरी पारी लक्ष्‍मण की 281 रनों की शानदार पारी के कारण भारत ने मैच की दूसरी पारी में वापसी की और 657 रनों का विशाल स्‍कोर खड़ा किया। दूसरी पारी में ऑस्‍ट्रेलिया की पूरी टीम मात्र 212 रनों पर ऑलआउट हो गई और भारत ने इस मैच को 171 रनों से अपना नाम कर लिया।

लक्ष्‍मण द्वारा खेली गई इस पारी ने दिख कि टीम के दिग्‍गज खिलाडि़यों में अभी भी किसी मैच का रूख बदलने की क्षमता है और लक्ष्‍मण ने नेपियर में कर दिखाया है। लक्ष्‍मण ने पहले भी कई बार अपने शानदार प्रदर्शन टीम को संकट से उबारा है।

नेपियर में भी यदि लक्ष्‍मण अपना विकेट गंवा देते, तो शायद भारतीय टीम को हार का सामना करना पड़ सकता था। लेकिन कोई भी किवी गेंदबाज लक्ष्‍मण रेखा को पार नहीं कर पाया। इस मैच की दोनों की पारियों में दिग्‍गज बल्‍लेबाजों ने शानदार प्रदर्शन किया। द्रविड़(83 और 62), तेंदुलकर(49 और 64) और लक्ष्‍मण (76 और 124) की पारियों ने यह साबित कर दिया है कि युवाओं में अभी इन दिग्‍गज खिलाडि़यों की जगह लेने के लिए काफी मेहनत करने की जरूरत है। इन दिग्‍गज खिलाडि़यों ने सालों की मेहनत के बाद ये मुकाम हासिल किया है, जिसे एक या दो खराब पारियों की वजह से नकारा नहीं जा सकता है।