Thursday, April 2, 2009

लक्ष्मण रेखा पार नहीं कर पाए कीवी


नेपियर टेस्ट के तीसरे दिन के आखिर में जब एक प्रैस कॉफ्रैंन्स में वीवीएस लक्ष्मण से पूछा गया कि क्या भारत इस टेस्ट को बचा पाएगा... उनका जवाब आया “जी बिल्कुल,

निश्चित तौर पर” ……दो दिन बाद मैच के आखिरी दिन लक्ष्मण भारत की साख बचाने के लिए क्रीज पर पहुंचे। सबको उनसे एक बेहद स्पेशल पारी की उम्मीद थी। लक्ष्मण आए और छा गए। उन्होंने अपने शानदार शॉट सेलेक्शन के जरिए न्यूजीलैंड के गेंदबाजों को चैन की सांस भी नसीब नहीं होने दी। नेपियर में जमाया गया उनका 14वां टेस्ट शतक एक बार फिर साबित करता है कि उनमें अभी काफी दमखम बाकी है।

लक्ष्मण की इस शानदार पारी के चलते भारत दूसरे टेस्‍ट मैच को ड्रॉ करा पाने में सफल रहा है। लक्ष्मण के अलावा गौतम गंभीर की 137 रनों की मैराथन पारी को भी नहीं भुलाया जा सकता। लेकिन गंभीर के साथ-साथ टीम के दिग्‍गज खिलाडि़यों ने जो प्रदर्शन किया, उसे भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। खासतौर पर वीवीएस लक्ष्‍मण की 124 रनों की नाबाद पारी को जिन्‍होंने अंत तक हार नहीं मानी। उनकी ये पारी साल 2001 के कोलकाता टेस्ट की याद दिलाती है, जब ऑस्‍ट्रेलिया के 445 रनों के दबाव में भारत की पहली पारी मात्र 171 रनों पर सिमट जाती है। तब सिर्फ वीवीएस लक्ष्‍मण ही एकमात्र ऐसे बल्‍लेबाज थे, जिन्‍होंने 59 रनों की पारी खेली। खराब बल्‍लेबाजी की बदौलत भारत को फॉलोऑन झेलना पड़ा। लेकिन दूसरी पारी लक्ष्‍मण की 281 रनों की शानदार पारी के कारण भारत ने मैच की दूसरी पारी में वापसी की और 657 रनों का विशाल स्‍कोर खड़ा किया। दूसरी पारी में ऑस्‍ट्रेलिया की पूरी टीम मात्र 212 रनों पर ऑलआउट हो गई और भारत ने इस मैच को 171 रनों से अपना नाम कर लिया।

लक्ष्‍मण द्वारा खेली गई इस पारी ने दिख कि टीम के दिग्‍गज खिलाडि़यों में अभी भी किसी मैच का रूख बदलने की क्षमता है और लक्ष्‍मण ने नेपियर में कर दिखाया है। लक्ष्‍मण ने पहले भी कई बार अपने शानदार प्रदर्शन टीम को संकट से उबारा है।

नेपियर में भी यदि लक्ष्‍मण अपना विकेट गंवा देते, तो शायद भारतीय टीम को हार का सामना करना पड़ सकता था। लेकिन कोई भी किवी गेंदबाज लक्ष्‍मण रेखा को पार नहीं कर पाया। इस मैच की दोनों की पारियों में दिग्‍गज बल्‍लेबाजों ने शानदार प्रदर्शन किया। द्रविड़(83 और 62), तेंदुलकर(49 और 64) और लक्ष्‍मण (76 और 124) की पारियों ने यह साबित कर दिया है कि युवाओं में अभी इन दिग्‍गज खिलाडि़यों की जगह लेने के लिए काफी मेहनत करने की जरूरत है। इन दिग्‍गज खिलाडि़यों ने सालों की मेहनत के बाद ये मुकाम हासिल किया है, जिसे एक या दो खराब पारियों की वजह से नकारा नहीं जा सकता है।

Tuesday, January 20, 2009

रवींद्र जडेजा : ‘जडेजा’ की क्रिकेट परंपरा में एक नया नाम

रवींद्र जडेजा को श्रीलंका दौरे के लिए भारतीय टीम में चुन लिया गया है। रवींद्र जडेजा सौराष्‍ट्र के लिए खेलते हैं। इसके अलावा बालकृष्‍ण जडेजा भी सौराष्‍ट्र के लिए खेलते हैं। अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले अजय जडेजा का नाम तो क्रिकेटप्रेमियों के बीच खासा परिचित है। इन तीनों जडेजा के बीच सरनेम के साथ-साथ एक और चीज कॉमन है। और वो ये, कि तीनों ही जामनगर से ताल्‍लुक रखते हैं।

करीब पांच लाख की आबादी वाले जामनगर की कई बातें इसे देश के दूसरे शहरों से अलग करती हैं। आजादी से पहले नवानगर रियासत के नाम से जाना-जाने वाला जामनगर देश के औद्योगिक नक्‍शे में एक अहम नाम है। रिलायंस और एस्‍सार की ऑयल रिफाइनरियों को अपने में समेटे यह शहर ‘ऑयल’ सिटी के नाम से मशहूर है। आर्थिक दृष्टि से काफी संपन्‍न यह तटीय शहर क्रिकेट में भी शुरू से काफी समृद्ध रहा है।

क्रिकेट और जामनगर का संबंध बहुत पुराना रहा है। सौ साल से भी ज्‍यादा पुराना, जब भारत ने न तो अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट में न तो कदम रखा था और न ही भारतीय क्रिकेट कंट्रोल नाम की संस्‍था वजूद था। करीब एक सदी पहले नवानगर रियासत के नाम से जाने जाने वाले इस शहर के महाराजा कुमार श्री रणजीतसिंहजी जडेजा उर्फ रणजी (जिनके नाम पर रणजी ट्रॉफी है) ने अपने बेहतरीन खेल की बदौलत उन्‍नीसवीं सदी के अंत में अपने शासकों के देश इंग्‍लैंड में धूम मचा दी थी। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनकी शख्सियत क्रिकेट के पितामह कहे जाने वाले विलियम गिलबर्ट ग्रेस (डब्‍ल्‍यू. जी. ग्रेस) के जैसी ही ऊंची थी।

रणजी ने अपनी उच्‍च शिक्षा इंग्‍लैंड में ही पूरी की और ज्‍यादातर समय वहीं बिताया। रणजीतसिंहजी ने मई 1895 में इंग्‍लैंड की काउंटी ससेक्‍स से अपने क्रिकेट करियर की शुरूआत की। उन्‍होंने एमसीसी के खिलाफ अपने डेब्‍यू मैच में ही शतक जड़कर अपनी क्रिकेट की प्रतिभा का परिचय दे दिया था। लेग ग्‍लांस और लेट कट जैसे शॉर्ट क्रिकेट को देने वाले रणजीतसिंहजी बल्‍लेबाज के साथ-साथ एक बेहतरीन स्लिप फील्‍डर और शानदार गेंदबाज भी थे। रणजीतसिंहजी पहले ‘जडेजा’ थे, जिन्‍होंने क्रिकेट में अपने हाथ आजमाए। तब से लेकर अब तक यानी रवींद्र जडेजा तक क्रिकेट और जडेजा का रिश्‍ता जारी है।

रणजी के जमाने में भारत की कोई अपनी क्रिकेट टीम नहीं थी और न ही उस समय भारत ने अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट में कदम ही रखा था। इसलिए रणजी ने शुरूआत भी इंग्‍लैंड की टीम से खेलते हुए की और अपना अंतिम अंतरराष्‍ट्रीय मैच भी इंग्‍लैंड की ओर से ही ऑस्‍ट्रेलिया के खिलाफ खेला।

रणजी की क्रिकेट विरासत को और पुख्‍ता किया उनके भतीजे और जामनगर के महाराजा कुमार श्री दिलीपसिंहजी जडेजा ने, जिनके नाम से दिलीप ट्रॉफी खेली जाती है। इन्‍होंने इंग्‍लैंड की ओर से 12 अंतरराष्‍ट्रीय मैच खेले, जिनमें उन्‍होंने 58.52 की औसत से 995 रन बनाए। इसके अलावा इन्‍होंने 205 फर्स्‍ट क्‍लास मैच खेले, जिसमें 50 शतकों के साथ इन्‍होंने 15485 रन बनाए।

जामनगर ने रणजी और दिलीप सिंह जी के अलावा वीनू मांकड, सलीम दुर्रानी, इंद्रजीत सिंह और अजय जडेजा जैसे शानदार क्रिकेट खिलाड़ी अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट को दिए। भारत ने वेस्‍टइंडीज जैसी ताकतवर टीम से उसकी जमीन पर जो पहला टेस्‍ट जीता, उसमें सलीम दुर्रनी की अहम भूमिका रही थी। इस मैच की दूसरी पारी में क्‍लाइव लॉयड और गैरी सोबर्स को पैवेलियन भेज भारत की जीत की ठोस बुनियाद रखी। दुर्रानी अर्जुन अवॉर्ड से सम्‍मानित होने वाले पहले क्रिकेटर थे।

जहां तक जाम नगर, जडेजा और क्रिकेट की बात है, तो रणजी, दिलीपसिंह जी के अलावा, इंद्रजीत सिंह जडेजा और अजय जडेजा ने भी अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट में भारत का प्रतिनिधित्‍व किया। इनके अलावा बालकृष्‍ण जडेजा, बिमल जडेजा, धर्मराज जडेजा, जदूवेंद्रसिंह जडेजा, लालूभा जडेजा, मोहनीश जडेजा, मुलूभा जडेजा, नरेंद्र जडेजा और राजेश जडेजा ने भी घरेलू क्रिकेट में जामनगर का नाम रौशन किया है।

बहुत कम लोग जानते हैं कि अजय जडेजा भी रणजीतसिंहजी के परिवार से ही ताल्‍लुक रखते हैं। फरवरी 1992 से वनडे करियर की शुरूआत करने वाले जडेजा ने हालांकि सौराष्‍ट्र के लिए एक भी फर्स्‍ट क्‍लास मैच नहीं खेला है। अजय जडेजा ने भारत की ओर से 196 वनडे और 15 टेस्‍ट मैच खेले। जडेजा एक आक्रमक बल्‍लेबाज और बेहतरीन फील्‍डर थे।

जामनगर ने इस बार फिर रवींद्र जडेजा के रूप में एक एक बेहतरीन क्रिकेटर भारत को दिया है। अभी तक जडेजा ने 22 फर्स्‍ट क्‍लास मैच खेले हैं, जिसमें उन्‍होंने 65 विकेट तो चटकाए ही हैं, साथ ही 37.66 की औसत से 1130 रन भी बनाए हैं। उनका सर्वश्रेष्‍ठ स्‍कोर नाबाद 232 रन रहा है, जो दिखाता है कि उनमें लंबी पारियां खेलने का भी मद्दा है। इस रणजी सीजन में भी उन्‍होंने शानदार ऑलराउंड खेल का मुजाहिरा किया। इस रणजी सीजन में वो 42 विकेट लेकर मुंबई के धवल कुलकर्णी के साथ सबसे ज्‍यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज रहे। बल्‍लेबाजी में छठे नंबर पर रहते हुए रवींद्र ने कुल 739 रन बनाए, जिसमें 2 शतक भी शामिल थे।

जडेजा ने फर्स्‍ट क्‍लास करियर में तो अपने आप को साबित कर दिया है। लेकिन, अब देखना है कि वे अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट में कितना सफल हो पाते हैं और अपने पहले के ‘जडेजा’ रणजी, दिलीप सिंह जी और अजय जडेजा की शानदार क्रिकेट विरासत को किन ऊंचाइयों तक ले जा पाने में सफल होते हैं।

घरेलू क्रिकेट में लद रहे हैं मुंबई की बादशाहत के दिन


अगर रणजी ट्रॉफी के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट में शुरूआत से ही मुंबई टीम का बोलबाला रहा है। लेकिन पिछले कुछ सालों में परिस्थितियां बदली है और अब सिर्फ मुंबई ही देश में क्रिकेट का पॉवर हाऊस नहीं रह गया है।

मुंबई ने 38वीं बार रणजी ट्रॉफी जीत एक नया रिकॉर्ड कायम कर दिया, लेकिन उसे यह जीत उतनी आसानी से हासिल नहीं हुई। फाइनल मैच में मुंबई की जद्दोजहद से साफ दिखाई दे रहा था कि मुंबई टीम का वर्चस्‍व जो रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट में हुआ करता था, वह अब धीरे-धीरे खत्‍म होता जा रहा है। पिछले कुछ सालों में परिस्थितियां बदली है और अब सिर्फ मुंबई ही देश में क्रिकेट का पॉवर हाऊस नहीं रह गया है। अब भारतीय टीम में उत्‍तर प्रदेश और झारखंड जैसी छोटी जगहों के खिलाड़ी भी शामिल है और काफी अच्‍छा प्रदर्शन कर रहे हैं। इसमें भारतीय टीम के कप्‍तान महेंद्र सिंह धोनी, प्रवीण कुमार और सुरेश रैना आदि शामिल हैं। इस समय सिर्फ सचिन तेंदुलकर और जहीर खान ही मुंबई रणजी टीम के ऐसे खिलाड़ी है, जो भारत की ओर से टेस्‍ट क्रिकेट खेल रहे हैं। कोई आश्‍चर्य नहीं कि मुंबई को भी अब रणजी मैच जीतने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है।

इस रणजी सीजन की ही बात करें तो कई ऐसे मौके आए जब मुंबई रणजी ट्रॉफी की दौड़ से बाहर होता नजर आया। लीग मैच में ही सौराष्‍ट्र के खिलाफ मुंबई को फॉलोऑन का सामना करना पड़ा। सौराष्‍ट्र के पहली पारी में बनाए गए 643 रनों के जवाब में मुंबई की टीम पहली पारी में 214 रनों पर आउट हो गई। सच तो यह है कि इस साल रणजी सीजन में मुंबई पहली पारी की बढ़त के आधार पर ही फाइनल तक पहुंचा है और मुबंई हर मैच में पहली पारी में बढ़त लेने की रणनीति के आधार पर ही खेला।

इस साल जहीर खान की शानदार गेंदबाजी और सचिन तेंदुलकर की टीम में मौजूदगी से टीम के युवा खिलाडि़यों का जोश सातवें आसमान पर था, जिसके बूते सेमीफाइनल और फाइनल मैच में मुंबई जीत दर्ज करने में कामयाब रही। सेमीफाइल में मुंबई के सामने वहीं सौराष्‍ट्र की टीम थी, जो लीग मैच में मुंबई को फॉलोऑन खेलने के लिए मजबूर कर चुकी थी, लेकिन यह सचिन की टीम में मौजूदगी का ही असर था कि मुंबई ने पहली पारी में 637 रनों का विशाल स्‍कारे बनाया। सचिन का भी इस स्‍कोर में महत्‍वपूर्ण योगदान रहा,इस मैच में उन्‍होंने 122 रनों की शानदारी पारी खेली। लेकिन इसके बावजूद मुंबई यह मैच जीत नहीं पाई और पहली पारी की बढ़त के आधार पर ही उसने फाइनल तक का सफर तय किया।

वहीं फाइनल की बात करें, मैच में एक समय जब मात्र 55 रनों पर मुंबई के 5 विकेट पैवेलियन लौट गए थे। ऐसा लग रहा था कि उत्‍तर प्रदेश अब पूरी तरह इस मैच पर हावी हो जाएगा। लेकिन उत्‍तर प्रदेश इसके बाद मिले कई सुनहरे मौकों को भुना नहीं पाई। इस मैच में मुंबई की पारी को बिखरने से रोहित शर्मा और अभिषेक नायर ने बचाया। लेकिन रोहित को प्रवीण कुमार की गेंद पर एक जीवनदान मिला, स्लिप में खड़े उत्‍तर प्रदेश के कप्‍तान मोहम्‍मद कैफ ने आसान सा कैच छोड़ दिया। अगर कैफ यह कैच पकड़ लेते, तो स्थिति कुछ और हो सकती थी।

उत्‍तर प्रदेश की पहली पारी में कैफ को अंपायर द्वारा गलत आउट देना भी मैच को उत्‍तर प्रदेश से दूर ले गया। कैफ का तब आउट दे दिया गया जब वह परविंदर सिंह के साथ मिलकर पारी को संभालने में लगे हुए थे। इसके बाद जहीर की कातिलाना गेंदबाजी के सामने उत्‍तर प्रदेश का कोई भी बल्‍लेबाज टिक नहीं पाया। जहीर खान ने पहली पारी में उत्‍तर प्रदेश के 7 विकेट चटकाए और मुंबई की उम्‍मीदें बढा दी।

अगर रणजी ट्रॉफी के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट में शुरूआत से ही मुंबई टीम का बोलबाला रहा है। अब तक 75 बार हुए इस टूर्नामेंट में मुंबई 42 बार फाइनल में प्रवेश कर चुकी है और यह 38वां मौका है, जब मुंबई ने ट्रॉफी जीतने क कारनामा कर दिखाया है। 1934 में शुरू हुए रणजी ट्रॉफी के पहले टूर्नामेंट में भी जिस टीम ने जीत दर्ज की वह मुंबई ही थी।

1958-59 से 1972-73 के बीच का समय रणजी ट्रॉफी में मुंबई का स्‍वर्ण युग कहा जा सकता है। यह वह समय था, जब मुंबई ने लगातार 15 बार रणजी ट्रॉफी को जीतकर एक रिकॉर्ड कायम किया। इस रिकॉर्ड को कोई टीम तोड़ना तो दूर, अभी तक इसके पास तक भी नहीं पहुंच पाई है। उस समय कोई भी टीम ऐसी नहीं थी, जो मुंबई के सामने टिक पाए। सिर्फ राजस्‍थान ही इस दौर में मुंबई के साथ जद्दोजहद करती नजर आई, जो इन 15 सालों में 7 बार फाइनल में मुबंई के साथ भिड़ी। लेकिन एक बार भी इस बीच मुंबई को हरा नहीं पाई।

उस समय मुंबई रणजी टीम के अच्‍छे प्रदर्शन के पीछे सबसे बड़ा कारण यह था कि इस टीम में आधे से ज्‍यादा खिलाड़ी ऐसे होते थे, जो भारतीय टीम के लिए भी खेल रहे होते थे। जैसे कि 1968/69 में मुंबई की रणजी टीम में दिलीप सरदेसाई, अजीत वाडेकर, सुधीर नायक, अशोक माकंड और एकनाथ सोलकर जैसे खिलाड़ी थे। दिलीप सरदेसाई जो इस समय मुंबई टीम की कमान संभाल रहे थे, वह भारतीय टीम के भी कप्‍तान थे। ऐसे खिलाड़ी जब रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट में उतरते थे, तो इन्‍हें देखकर सामने वाली टीम के आधे हौसले तो मैच से पहले ही पस्‍त हो जाते थे। इन दिग्‍गज खिलाडि़यों के अलावा उस मुंबई टीम की बेंच स्‍ट्रेंग्‍थ भी काफी मजबूत हुआ करती थी।

मुंबई शुरूआत से ही क्रिकेट का पॉवर हाऊस रहा है। मुंबई ने ही फारूख इंजीनियर, दिलीप वेंगसरकर, सुनील गावस्‍कर, रवि शास्‍त्री और सचिन तेंदुलकर जैसे दिग्‍गज खिलाड़ी अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट को दिए हैं।
लेकिन अब युवा पीढ़ी में बात करे तो बहुत कम ऐसे खिला‍ड़ी है,जिनमें टेस्‍ट मैच खेलने का माद्दा नजर आता है। टैलेंट की इस कमी का असर मुंबई के रणजी प्रदर्शन पर भी साफ दिखाई देता है।

Sunday, January 18, 2009

सब तो खेल रहे हैं, फिर धोनी क्‍यों नहीं


जब सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली जैसे दिग्‍गज खिलाड़ी अपने राज्‍य की रणजी टीम से खेल सकते हैं, तो फिर धोनी दिलीप ट्रॉफी में ईस्‍ट जोन के लिए क्‍यों नहीं खेलना चाहते हैं? कहीं धोनी घरेलू मैचों की उपयोगिता को भूल तो नहीं गए? ये सवाल अहम हैं क्‍योंकि इन्‍हीं घरेलू मैचों ने टीम इंडिया के मौजूदा कप्‍तान के राष्‍ट्रीय टीम में आने की भू‍मिका तैयार की थी।

रोहित शर्मा, सुरेश रैना, प्रवीण कुमार, आर पी सिंह जैसे टीम इंडिया के नए रंगरूटों की बात तो छोड़ ही दें, मास्‍टर ब्‍लास्‍टर सचिन तेंदुलकर और जहीर खान जैसे बड़े और स्‍थापित खिलाड़ी भी अपनी टीम को रणजी चैंपियन बनाने के लिए पूरी तरह कमर कसे हुए हैं। दोनों ने सौराष्‍ट्र के खिलाफ रणजी ट्रॉफी के सेमीफाइन में मुंबई की ओर से शिरकत की और फाइनल में भी उत्‍तर प्रदेश के खिलाफ अपनी टीम को ताकत देने के लिए तैयार हैं।

राहुल द्रविड़ भी क्‍वार्टर फाइनल में कर्नाटक की ओर से खेले, तो बंगाल की रणजी टीम को प्‍लेट डिवीजन से सुपर लीग में पहुंचाने के लिए सौरव गांगुली ने अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट से संन्‍यास के बाद भी खेलने से गुरेज नहीं किया। और, इसमें भी शायद ही किसी को संदेह होगा कि वीरेंद्र सहवाग, गौतम गंभीर, ईशांत शर्मा, वीवीएस लक्ष्‍मण, युवराज सिंह, हरभजन सिंह और अमित मिश्रा की टीमें अगर रणजी ट्रॉफी में आगे का सफर तय करतीं, तो वे भी शिरकत कर रहे होते क्‍योंकि पाकिस्‍तान दौरा रद्द हो जाने के बाद भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्‍य फिलहाल खाली हैं।
भारतीय टीम के कप्‍तान महेंद्र सिंह धोनी भी खाली हैं (क्रिकेट की व्‍यस्‍तताओं से) और छुट्टियां मना रहे हैं। और, ऐसी छुट्टियां मना रहे हैं कि कोई चाहे तो भी उनसे संपर्क नहीं कर स‍कता। जी हां, यहां तक कि चयनकर्ता भी नहीं। वाकया कुछ यूं है। देश के सबसे बड़े घरेलू टूर्नामेंटों में एक, दिलीप ट्रॉफी 22 जनवरी से शुरू हो रही है, जो 9 फरवरी तक चलेगी। पूर्व क्षेत्र के चयनकर्ता राजा वेंकट चाहते थे कि इस टूर्नामेंट में ईस्‍ट जोन की टीम की कमान महेंद्र सिंह धोनी संभालें, इसीलिए वेंकट ने धोनी से संपर्क साधना चाहा, लेकिन भारतीय कप्‍तान ने फोन नहीं उठाया। यहां तक कि जब झारखंड के सिलेक्‍टर जोध सिंह ने उन्‍हें मैसेज किया, तो धोनी ने उसका भी जवाब नहीं दिया। हार कर चयनकर्ताओं को पूर्व टेस्‍ट सलामी बल्‍लेबाज शिव सुंदर दास को ईस्‍ट जोन का कप्‍तान बनाना पड़ा।

अब सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि जब सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली जैसे दिग्‍गज खिलाड़ी अपने राज्‍य की रणजी टीम से खेल सकते हैं, तो फिर धोनी दिलीप ट्रॉफी में ईस्‍ट जोन के लिए क्‍यों नहीं खेलना चाहते हैं? सचिन ने तो मुंबई की टीम को फाइनल में पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। सौराष्‍ट्र के खिलाफ सेमीफाइनल में बुखार के बावजूद वे मैदान में रहे और सैकड़ा जमाया।

राहुल द्रविड़ ने भी कर्नाटक के लिए रणजी ट्रॉफी में खेल कर कर्नाटक के युवा खिलाडि़यों का हौसला बढ़ाया। सबसे बड़ा उदाहरण तो भारतीय टीम के सबसे सफल कप्‍तान माने जाने वाले सौरव गांगुली ने दिया, जो अब अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह चुके हैं। लेकिन, इसके बावजूद जब उन्‍होंने देखा कि बंगाल की टीम को उनकी जरूरत है, तो वह एक बार फिर मैदान पर उतर गए। सौरव की मौजूदगी में बंगाल के युवाओं में जोश भर गया और बंगाल ने गोवा पर जीत दर्ज कर अगले साल के लिए रणजी ट्रॉफी में सुपर लीग के दरवाजे अपने लिए खुलवा लिए।

जहां तक धोनी के झारखंड की ओर से रणजी नहीं खेल पाने की बात है, वह तो समझ में आती है क्‍योंकि उस समय भारतीय टीम इंग्‍लैंड के साथ दो टेस्‍ट मैचों की सीरीज खेल रही थी। जब धोनी अंतरराष्‍ट्रीय मैचों से फ्री हुए, उससे पहले ही झारखंड रणजी ट्रॉफी का अपना आखिरी मैच खेल चुका था। लेकिन, दिलीप ट्रॉफी के लिए इस तरह की बेरूखी दिखाने का क्‍या मतलब निकलता है।

अगर आप अंतरराष्‍ट्रीय मैचों में व्‍यस्‍त हैं, तो घरेलू क्रिकेट में उपलब्‍ध न हो पाने की बात समझ में आती है। लेकिन जब आपके पास समय है, तो किसी घरेलू टूर्नामेंट के लिए उपलब्‍ध न होना समझ से परे है। धोनी इस समय युवाओं की पहली पसंद हैं। अगर वह किसी घरेलू टूर्नामेंट में हिस्‍सा लेते हैं, तो युवा क्रिकेटरों में भी जोश आएगा। साथ ही, घरेलू टूर्नामेंटों में दर्शक स्‍टार खिलाडि़यों को देखने के लिए ही पहुंचते हैं।

पिछले दिनों जब सौरव गांगुली बंगाल की ओर से दिल्‍ली के करनैल सिंह स्‍टेडियम में खेलने पहुंचे, तो स्‍टेडियम में दर्शकों की भीड़ लगी हुई थी। हर कोई सौरव गांगुली की एक झलक देखना चाहता था। दर्शकों के साथ-साथ मीडिया के लोग भी अच्‍छी-खासी संख्‍या में मौजूद थे। दादा को देखने के लिए जितने बेताब दर्शक थे, उतने ही बेताब मीडिया कर्मी भी थे।

अगर धोनी दिलीप ट्रॉफी में शिरकत करते तो वहां का भी नजारा कुछ ऐसा ही हो सकता था। लेकिन, शायद धोनी अब सिर्फ अंतरराष्‍ट्रीय मैचों में ही अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहते है, घरेलू मैचों में नहीं।
उनकी कप्‍तानी में टीम इंडिया शानदार प्रदर्शन कर रही है। धोनी की ही कप्‍तानी में भारत ने पहले ऑस्‍ट्रेलिया और फिर जोश से भरी हुई इंग्‍लैंड की टीम को वनडे और टेस्‍ट सीरीज, दोनों में ही धूल चटाई। कहीं ऐसा तो नहीं कि अंतरराष्‍ट्रीय मैचों में मिल रही इस सफलता से धोनी घरेलू मैचों की उपयोगिता को भूल गए हैं और फिर उनके लिए रणजी और दिलीप ट्रॉफी जैसे घरेलू टूर्नामेंट अब कोई मायने ही नहीं रखते हैं।

दरअसल, किसी भी देश की टीम में प्रवेश पाने के लिए घरेलू और फर्स्‍ट क्‍लास क्रिकेट में किया गया प्रदर्शन काफी अहम साबित होता है। इसका एक नहीं, बल्कि सैकड़ों उदाहरण मौजूद हैं। चाहे सचिन हो, सौरव हो, अनिल कुंबले हों, द्रविड़ हों या फिर मौजूदा कप्‍तान महेंद्र सिंह धोनी, सबने पहले घरेलू क्रिकेट में अपनी चमक बिखेरी और इसी के बूते भारतीय टीम का अभिन्‍न हिस्‍सा बने। यह बात क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में टीम इंडिया के कप्‍तान महेंद्र सिंह धोनी को याद रखनी चाहिए।

युवा खिलाडि़यों पर रहेगा जीत का दारोमदार

रणजी ट्रॉफी भारत में घरेलू क्रिकेट का सबसे बड़ा टूर्नामेंट है, जिसकी परफॉर्मेंस हर खिलाड़ी के लिए काफी मायने रखती है। यह वो स्‍टेज है जहां से अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट में अपनी पहचान बनाने का एक दरवाजा भी खुलता है। यह सही है कि शानदार प्रदर्शन कर रही टीम इंडिया में इस समय नए खिलाडि़यों के लिए ज्‍यादा गुंजाइश नहीं दिखती, लेकिन लगातार खेलने रहने के कारण खिलाडि़यों को लग रही चोटों से संभावनाएं कभी भी खत्‍म नहीं होती और ये युवा खिलाड़ी ऐसे ही मौके की उम्‍मीद में एक बार फिर अपना सर्वश्रेष्‍ठ प्रदर्शन करने की कोशिश जरूर करेंगे।

भारत में घरेलू क्रिकेट का सबसे बड़ा टूर्नामेंट माना जाने वाला रणजी ट्रॉफी इस साल अपने आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुका है। महीनों की जद्दोजहद के बाद सेमीफाइनल में मुंबई ने सौराष्‍ट्र को और यूपी ने तमिलनाडु को शिकस्‍त देकर फाइनल में अपनी जगह बनाई। ये दोनों ही टीमें अब खिताब से सिर्फ एक कदम की दूरी पर हैं। प्रारंभिक मुकाबलों से लेकर फाइनल तक के इनके सफर में कई खिलाडि़यों ने अपने प्रदर्शनों की छाप छोड़ी है। इनमें से कई ऐसे हैं जो पिछले कई सालों से लगातार अच्‍छा प्रदर्शन कर रहे हैं तो कुछ युवा और नए खिलाड़ी भी हैं जो नए जोश और जज्‍बे के साथ इन मुकाबलों में नई जान भर रहे हैं। सोमवार को जब ये दोनों टीमें आखिरी मुकाबले के लिए उतरेंगी तो एक बार फिर निगाहें इन खिलाडि़यों पर होंगी।

सबसे पहले बात करते हैं मुंबई के दायें हाथ के बल्‍लेबाज अंजिक्‍या रहाणे की, जिन्‍होंने सेमीफाइनल मैच में 85 रनों की शानदार पारी खेलकर मुंबई टीम को कप्‍तान वसीम जाफर के साथ मिलकर बेहतरीन शुरूआत दी। रहाणे की इस पारी की तारीफ मास्‍टर ब्‍लास्‍टर सचिन तेंदुलकर ने भी की थी। सेमीफाइनल मैच के पहले दिन जब रहाणे टीब्रेक में ड्रेसिंग रूम पहुंचे, तो तेंदुलकर ने उनसे कहा कि तुम बहुत अच्‍छा खेल रहे हो, कोई भी गलत शॉट नहीं खेलना, रन अपने आप ही बनते रहेंगे। मैच के बाद सचिन ने खुद रहाणे की तारीफ की और कहा कि रहाणे लंबी रेस का घोड़ा साबित हो सकते हैं। रहाणे ने इस रणजी सीजन में अभी तक खेले गए 9 मैचों की 15 पारियों में 75.78 की औसत से 1061 रन बनाए हैं। इसमें 4 शतक और 5 अर्धशतक शामिल हैं। हालांकि वसीम जाफर 1174 रन बनाकर उनसे थोड़ा आगे हैं, लेकिन यह अंतर सिर्फ सेमीफाइनल मैच में जाफर द्वारा लगाए गए तीसरे शतक से आया है। रहाणे की यह शानदार परफॉर्मेंस रणजी के पिछले सीजन से ही जारी है। पिछले साल उन्‍होंने 6 मैचों की 11 पारियों में 487 रन बनाए थे, जिसमें 1 शतक और 2 अर्धशतक शामिल थे।

वहीं दूसरी और यूपी टीम में बायें हाथ के बल्‍लेबाज तन्‍मय श्रीवास्‍तव ने अपनी टीम को फाइनल तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है। तन्‍मय भारत की अंडर-19 वर्ल्‍ड कप विजेता टीम के हीरो थे। इस टूर्नामेंट में उन्‍होंने भारत की ओर से सबसे ज्‍यादा रन बनाए थे और टीम को कप दिलाने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई थी। तब से अब तक तन्‍मय लगातार अच्‍छा प्रदर्शन कर रहे हैं। आईपीएल में किंग्‍स इलेवन पंजाब की टीम का हिस्‍सा रहे तन्‍मय ने इस साल रणजी ट्रॉफी में आंध्रा के खिलाफ 154 रनों की पारी खेल शानदार आगाज किया। इस रणजी सीजन में तन्‍मय ने 8 मैचों की 13 पारियों में 54.50 की औसत से 654 रन बनाए हैं, जिसमें 2 शतक और 4 अर्धशतक शामिल हैं।

बात करें गेंदबाजों की तो मुंबई की ओर से जिस गेंदबाज ने सबसे ज्‍यादा ध्‍यान अपनी ओर आकर्षित किया, वो हैं धवल कुलकर्णी। इंडियन प्रीमियर लीग से पहली बार चर्चा में आए कुलकर्णी आईपीएल में मुंबई इंडियन्‍स टीम का हिस्‍सा थे। आईपीएल के 10 मैचों में 11 विकेट लेकर दायें हाथ के इस मध्‍यम तेज गति के गेंदबाज ने यह सिद्ध कर दिया था कि उसमें विकेट लेने की भरपूर क्षमता है। ट्वेंटी-20 क्रिकेट में एक गेंदबाज का सबसे बड़ा हथिहार होता है, बिना अपनी एकाग्रता खोए सही लाइन और लेंग्‍थ के साथ गेंदबाजी करना। यह खासियत आईपीएल में कुलकर्णी की गेंदबाजी में दिखाई दी, जो रणजी ट्रॉफी मुकाबलों में भी जारी है। इस सीजन में कुलकर्णी विकेट लेने के मामले में सिर्फ सौराष्‍ट्र के रवीन्‍द्र जडेजा(42 विकेट) और गुजरात के मोहनीश परमार(41 विकेट) से पीछे हैं। कुलकर्णी ने 8 मैचों में 37 विकेट लिए हैं। सेमीफाइनल मैच में सौराष्‍ट्र के तीन मुख्‍य विकेट लेकर कुलकर्णी ने ही मुंबई की जीत की राह आसान की थी।

वहीं दूसरी ओर यूपी के सिर्फ 18 साल के दायें हाथ के मध्‍यम तेज गति के गेंदबाज भुवनेश्‍वर कुमार ने भी अपनी सधी हुई गेंदबाजी से सबका ध्‍यान अपनी ओर खींचा है। इस रणजी सीजन से पहले कोई नहीं जानता था कि भुवनेश्‍वर कुमार कौन है, वह सभी के लिए अंजान थे। लेकिन उन्‍होंने अपनी शानदार गेंदबाजी से अपनी एक अलग ही पहचान बनाई है। इस युवा गेंदबाज ने इस रणजी सीजन में 8 मैचों में 25 विकेट लिए। उन्‍होंने आंध्रा के खिलाफ खेले गए पहले ही मैच में 9 विकेट लेकर यह साबित कर दिया था कि उनमें क्षमता की कमी नहीं है।

रणजी ट्रॉफी भारत में घरेलू क्रिकेट का सबसे बड़ा टूर्नामेंट है, जिसकी परफॉर्मेंस हर खिलाड़ी के लिए काफी मायने रखती है। यह वो स्‍टेज है जहां से अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट में अपनी पहचान बनाने का एक दरवाजा भी खुलता है। पिछले साल रणजी टूर्नामेंट में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले गौतम गंभीर और एस बद्रीनाथ जैसे खिलाड़ी इस समय भारत की ओर से खेल रहे हैं। हां, यह सही है कि शानदार प्रदर्शन कर रही टीम इंडिया में इस समय नए खिलाडि़यों के लिए ज्‍यादा गुंजाइश नहीं दिखती, लेकिन लगातार खेलने रहने के कारण खिलाडि़यों को लग रही चोटों से संभावनाएं कभी भी खत्‍म नहीं होती और ये युवा खिलाड़ी ऐसे ही मौके की उम्‍मीद में एक बार फिर अपना सर्वश्रेष्‍ठ प्रदर्शन करने की कोशिश जरूर करेंगे।

बेमानी नहीं होगा भुवनेश्‍वर से उम्‍मीदें लगाना

उत्‍तर प्रदेश के युवा गेंदबाज भुवनेश्‍वर कुमार ने हालांकि फर्स्‍ट क्‍लास में ज्‍यादा मैच नहीं खेले हैं, लेकिन कम मैचों में ही उन्‍होंने साबित कर दिया है कि उनमें काफी संभावनाएं हैं। मुंबई के खिलाफ रणजी फाइनल के पहले दिन बेहतरीन गेंदबाजी कर सबका ध्‍यान अपनी ओर खींचा है।

18 साल के भुवनेश्‍वर कुमार ने अभी तक 13 फर्स्‍ट क्‍लास मैचों की 22 पारियों में करीब दो हजार गेंदों फेंकी हैं, लेकिन मुंबई के खिलाफ रणजी ट्रॉफी के फाइनल मैच के 20वें ओवर की जो दूसरी गेंद उन्‍होंने फेंकी, वह उनके लिए किसी ख्‍वाब के हकीकत में तब्‍दील होने से कम नहीं रही होगी। इस गेंद पर उन्‍होंने सचिन तेंदुलकर का बेशकीमती विकेट लिया।

भुवनेश्‍वर कुमार के हाथों से निकली इस गेंद को सचिन ने रक्षात्‍मक तरीके से खेलना चाहा, लेकिन गेंद स्विंग हुई और सचिन को चकमा देते हुए उनके बल्‍ले का अंदरूनी किनारा लिया, फिर पैड से टकराई और शॉर्ट मिड विकेट की ओर उछली, जहां शिवकांत शुक्‍ला ने आगे की ओर छलांग लगाते हुए उसे कैच में तब्‍दील कर दिया। सचिन पहली बार रणजी ट्रॉफी में बिना खाता खोले पैवेलियन लौट गए। सचिन को आउट करने की खुशी भुवनेश्‍वर के चेहरे पर साफ पढ़ी जा सकती थी।

हालांकि, इसके पहले भुवनेश्‍वर मुंबई के दो बल्‍लेबाजों को पेवेलियन की राह दिखा कर रणजी फाइनल में खुद को और अपनी टीम को शानदार शुरुआत दे चुके थे। लेकिन, सचिन के विकेट की तो बात ही कुछ और थी। रणजी ट्रॉफी में सचिन को पहली बार शून्‍य पर आउट करने वाले कुमार के लिए यह लम्‍हा उनके करियर का टर्निंग प्‍वाइंट साबित हो सकता है।

याद कीजिए 2006 की चैलेंजर ट्रॉफी। सचिन को अपनी एक बेहतरीन गुगली पर बोल्‍ड कर पीयूष चावला सुखिर्यों में छा गए और यही उपलब्धि थी, जिसकी वजह से उन्‍हें टीम इंडिया में जगह बनाने में ज्‍यादा देर नहीं लगी। लिहाजा, इस बार रणजी फाइनल में सचिन का विकेट लेने वाले भुवनेश्‍वर कुमार के लिए यह उम्‍मीद रखना बेमानी नहीं होगा।

बहरहाल, मोहम्‍मद कैफ ने शायद यह भांप लिया था कि उनके गेंदबाज इस पिच पर अच्‍छी गेंदबाजी कर सकते हैं। इसीलिए उन्‍होंने टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी करने का फैसला लिया। कैफ को भरोसा था कि कुमार में विकेट लेने की क्षमता है, यही कारण था कि उन्‍होंने शुरूआत में प्रवीण कुमार के साथ भुवनेश्‍वर को आक्रमण पर लगाया। भुवनेश्‍वर जब नई गेंद से पहला ओवर डालने के लिए आए तो स्‍ट्राइक पर वसीम जाफर जैसे दिग्‍गज बल्‍लेबाज थे, लेकिन उनकी स्विंग होती गेंदों का जाफर के पास कोई जवाब नहीं था। कुमार का पहला ओवर मेडन रहा। पिछले मैच में तिहरा शतक जड़ने वाले वसीम जाफर ( 1 रन) को भुवनेश्‍वर ने छठे ओवर में ही पैवेलियन की राह दिखा दी और अपने कप्‍तान के भरोसे को सही साबित किया।

फिर उन्‍होंने 14वे ओवर की पांचवीं गेंद पर दूसरे ओपनर विनायक सामंत और 20 वें ओवर की दूसरी गेंद पर सचिन तेंदुलकर को भी पैवेलियन भेज भुवनेश्‍वर ने मुंबई को बैकफुट पर धकेल दिया। इस समय मुंबई 55 रनों पर टॉप ऑर्डर के चार बल्‍लेबाजों को खोकर गंभीर मुश्किल में आ गई थी।

इसके बाद रोहित शर्मा और अभिषेक नायर ने 207 रनों की साझेदारी कर मुंबई को एक बड़े स्‍कोर तक पहुंचने की आस जगा दी और ऐसा लगने लगा कि उत्‍तर प्रदेश की टीम मुकाबले में पिछड़ने लगी है, तब कप्‍तान कैफ ने 81 ओवर बाद दूसरी नई गेंद ली और एक बार फिर बड़ी उम्‍मीदों के साथ भुवनेश्‍वर को थमा दी। भुवनेश्‍वर ने एक बार फिर अपने कप्‍तान के भरोसे को टूटने नहीं दिया।

कुमार ने नई गेंद से पहले ओवर की पहली ही गेंद पर नायर (99) को एलबीडब्‍ल्‍यू कर पेवेलियन भेज दिया। उन्‍होंने न सिर्फ अभिषेक को शतक से महरूम कर दिया, बल्कि मुंबई के बड़े स्‍कोर की उम्‍मीदों को भी करारा झटका दे दिया। इसकी अगली ही गेंद पर उन्‍होंने साई राज बहुतुले को भी पेवेलियन की राह दिखा, अपनी टीम में एक नया जोश भर दिया।

उत्‍तर प्रदेश के दायें हाथ के इस मध्‍यम तेज गति के इस गेंदबाज ने 2008-09 के रणजी सेशन में सधी हुई गेंदबाजी से सबका ध्‍यान अपनी ओर खींचा है। इस रणजी सीजन से पहले कोई नहीं जानता था कि भुवनेश्‍वर कुमार सिंह कौन है? वह सभी के लिए अनजान थे। लेकिन, उन्‍होंने अपनी शानदार गेंदबाजी से अपनी एक अलग ही पहचान बनाई है। इस युवा गेंदबाज ने इस रणजी सीजन में 9 मैचों में 31 विकेट लिए । उन्‍होंने आंध्र प्रदेश के खिलाफ खेले गए पहले ही मैच में 9 विकेट लेकर यह साबित कर दिया था कि उनमें क्षमता की कमी नहीं है।
भवुनेश्‍वर एक ऐसी टीम के लिए खेल रहे हैं, जिसमें आरपी सिंह और प्रवीण कुमार जैसे अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर के तेज गेंदबाज और पीयूष चावला जैसे स्पिनर शामिल हैं। ये सभी अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर खुद को साबित कर चुके हैं। ऐसे गेंदबाजों के टीम में रहते अंतिम 11 में जगह बनाना और उनकी बराबरी का प्रदर्शन करना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है।

Sunday, November 9, 2008

सौरव गांगुली का शतक से शून्‍य तक का सफर

सौरव गांगुली के करियर का ऐसा अंत होगा, शायद ही किसी ने सोचा होगा। लेकिन, दादा के भाग्‍य में शायद ऐसी ही विदाई लिखी थी। जेसन क्रेजा ने गांगुली को आखिरी पारी में शून्‍य पर आउट कर उनकी विदाई को किरकिरा कर दिया।

वो अपना आखिरी टेस्‍ट खेल रहे थे और उनके सामने गेंदबाजी कर रहा था वह गेंदबाज, जो अपना पहला टेस्‍ट खेल रहा था। पहली पारी में दोनों ने शानदार प्रदर्शन किया था। सौरव गांगुली ने 85 रन बनाए थे, तो जेसन क्रेजा ने आठ विकेट हासिल किए थे। दूसरी पारी में दोनों के बीच एक रोचक मुकाबले की उम्‍मीद थी। लेकिन, मुकाबला शुरू होने से पहले ही खत्‍म हो गया। पारी का 47वां ओवर फेंक रहे क्रेजा ने इस ओवर की दूसरी गेंद पर ही सौरव गांगुली को शून्‍य पर आउट कर उनकी विदाई का मजा किरकिरा कर दिया। गांगुली क्रीज पर आए और चल दिए।

क्रेजा के लिए जहां यह लम्‍हा जश्‍न का था, वहीं दादा के लिए मायूसी का। निश्चित रूप से दर्शकों और खुद दादा को भी उम्‍मीद होगी कि वे अपनी आखिरी पारी को यादगार बनाने की कोशिश करेंगे, लेकिन उम्‍मीदें टूट गईं। लक्ष्‍मण के आउट होने के बाद बल्‍लेबाजी करने उतरे सौरव गांगुली जैसन क्रेजा की एक घूमती हुई गेंद को समझने में नाकाम रहे और उसे क्रॉस द लाइन खेला। गेंद बल्‍ले का लीडिंग ऐज लेते हुए क्रेजा की ओर बढ़ी और क्रेजा ने इसे कैच में तब्दील कर दादा की पारी का अंत सिर्फ एक गेंद में कर दिया।
सौरव गांगुली के लगभग डेढ़ दशक लंबे करियर का अंत इस तरह से होगा, ऐसा न तो खुद उन्होंने सोचा होगा और न ही उनके चाहने वालों को ही ऐसी उम्‍मीद होगी। आउट होने के बाद एक पल को तो दादा को यकीन ही नहीं हुआ कि वो आउट हो चुके हैं। उन्‍होंने एक बार क्रेजा की ओर देखा, फिर ऊपर आसमान की ओर देखा। शायद वो भगवान से कह रहे होंगे कि आखिर ऐसा क्‍यों?

अंत तक हार नहीं मानने वाले सौरव ने पहली पारी में अपने इरादे साफ कर दिए थे कि वो अपने करियर की आखिरी पारी को यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंग। पहली पारी में उन्‍होंने 85 रन बनाए, जिसमें 8 चौके और एक शानदार छक्‍का शामिल था। दूसरी पारी में भी जब सौरव बल्‍लेबाजी करने के लिए उतरे होंगे, तो उन्‍होंने यही सोचा होगा कि वो एक बड़ी पारी खेलकर अपनी विदाई को यादगार बना देंगे, लेकिन ऐसा हो न सका।

दादा ने अपने टेस्‍ट करियर की शुरूआत इंग्‍लैंड के खिलाफ क्रिकेट के मक्‍का कहे जाने वाले लोर्डस के मैदान से शानदार सेंचुरी जड़ कर की थी। इस पारी में उन्‍होंने 131 रनों की शानदार पारी खेली थी, जिसमें 20 चौके शामिल थे। हालांकि, यह मैच ड्रॉ रहा था। भारत को कई ऐतिहासिक जीत दिलाने वाले इस पूर्व कप्‍तान ने अपने पूरे टेस्‍ट करियर में 16 सेंचुरी और 35 हाफ सेंचुरी बनाई। लेकिन, अपने आगाज को शानदार अंजाम तक नहीं पहुंचा पाए।

वैसे अपने टेस्‍ट करियर में तो काफी रिकॉर्ड बनाए। इस पारी में भी वे सर डॉन की बराबरी कर गए। अंतिम पारी में शून्‍य के स्‍कोर पर आउट होकर वे महान क्रिकेटर सर डॉन ब्रेडमैन के साथ खड़े हो गए हैं। ब्रेडमैन के करियर का अंत भी शून्‍य से ही हुआ था। ओवल में इंग्‍लैंड के खिलाफ खेले गए अपने अंतिम मैच में सर डॉन ब्रेडमैन शून्‍य के स्‍कोर पर आउट हो गए थे। लेकिन, ब्रेडमैन के इस पारी की बराबरी करने पर खुशी तो बिल्‍कुल नहीं होगी क्‍योंकि कोई क्रिकेटर अपनी ऐसी विदाई बिलकुल नहीं चाहेगा।
यह भी विडंबना ही है कि शतक के साथ अपने टेस्‍ट क्रिकेट का आगाज करने वाले महाराज के करियर का अंत शून्‍य के साथ हुआ। दादा ने अपने करियर में कामयाबी के शिखर को भी छुआ है और नाकामयाबियों का दर्द भी झेला है। दादा के आखिरी टेस्‍ट की दोनों पारियां इस उतार-चढ़ाव का आइना हैं।