Tuesday, January 20, 2009
घरेलू क्रिकेट में लद रहे हैं मुंबई की बादशाहत के दिन
अगर रणजी ट्रॉफी के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट में शुरूआत से ही मुंबई टीम का बोलबाला रहा है। लेकिन पिछले कुछ सालों में परिस्थितियां बदली है और अब सिर्फ मुंबई ही देश में क्रिकेट का पॉवर हाऊस नहीं रह गया है।
मुंबई ने 38वीं बार रणजी ट्रॉफी जीत एक नया रिकॉर्ड कायम कर दिया, लेकिन उसे यह जीत उतनी आसानी से हासिल नहीं हुई। फाइनल मैच में मुंबई की जद्दोजहद से साफ दिखाई दे रहा था कि मुंबई टीम का वर्चस्व जो रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट में हुआ करता था, वह अब धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। पिछले कुछ सालों में परिस्थितियां बदली है और अब सिर्फ मुंबई ही देश में क्रिकेट का पॉवर हाऊस नहीं रह गया है। अब भारतीय टीम में उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसी छोटी जगहों के खिलाड़ी भी शामिल है और काफी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। इसमें भारतीय टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी, प्रवीण कुमार और सुरेश रैना आदि शामिल हैं। इस समय सिर्फ सचिन तेंदुलकर और जहीर खान ही मुंबई रणजी टीम के ऐसे खिलाड़ी है, जो भारत की ओर से टेस्ट क्रिकेट खेल रहे हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि मुंबई को भी अब रणजी मैच जीतने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है।
इस रणजी सीजन की ही बात करें तो कई ऐसे मौके आए जब मुंबई रणजी ट्रॉफी की दौड़ से बाहर होता नजर आया। लीग मैच में ही सौराष्ट्र के खिलाफ मुंबई को फॉलोऑन का सामना करना पड़ा। सौराष्ट्र के पहली पारी में बनाए गए 643 रनों के जवाब में मुंबई की टीम पहली पारी में 214 रनों पर आउट हो गई। सच तो यह है कि इस साल रणजी सीजन में मुंबई पहली पारी की बढ़त के आधार पर ही फाइनल तक पहुंचा है और मुबंई हर मैच में पहली पारी में बढ़त लेने की रणनीति के आधार पर ही खेला।
इस साल जहीर खान की शानदार गेंदबाजी और सचिन तेंदुलकर की टीम में मौजूदगी से टीम के युवा खिलाडि़यों का जोश सातवें आसमान पर था, जिसके बूते सेमीफाइनल और फाइनल मैच में मुंबई जीत दर्ज करने में कामयाब रही। सेमीफाइल में मुंबई के सामने वहीं सौराष्ट्र की टीम थी, जो लीग मैच में मुंबई को फॉलोऑन खेलने के लिए मजबूर कर चुकी थी, लेकिन यह सचिन की टीम में मौजूदगी का ही असर था कि मुंबई ने पहली पारी में 637 रनों का विशाल स्कारे बनाया। सचिन का भी इस स्कोर में महत्वपूर्ण योगदान रहा,इस मैच में उन्होंने 122 रनों की शानदारी पारी खेली। लेकिन इसके बावजूद मुंबई यह मैच जीत नहीं पाई और पहली पारी की बढ़त के आधार पर ही उसने फाइनल तक का सफर तय किया।
वहीं फाइनल की बात करें, मैच में एक समय जब मात्र 55 रनों पर मुंबई के 5 विकेट पैवेलियन लौट गए थे। ऐसा लग रहा था कि उत्तर प्रदेश अब पूरी तरह इस मैच पर हावी हो जाएगा। लेकिन उत्तर प्रदेश इसके बाद मिले कई सुनहरे मौकों को भुना नहीं पाई। इस मैच में मुंबई की पारी को बिखरने से रोहित शर्मा और अभिषेक नायर ने बचाया। लेकिन रोहित को प्रवीण कुमार की गेंद पर एक जीवनदान मिला, स्लिप में खड़े उत्तर प्रदेश के कप्तान मोहम्मद कैफ ने आसान सा कैच छोड़ दिया। अगर कैफ यह कैच पकड़ लेते, तो स्थिति कुछ और हो सकती थी।
उत्तर प्रदेश की पहली पारी में कैफ को अंपायर द्वारा गलत आउट देना भी मैच को उत्तर प्रदेश से दूर ले गया। कैफ का तब आउट दे दिया गया जब वह परविंदर सिंह के साथ मिलकर पारी को संभालने में लगे हुए थे। इसके बाद जहीर की कातिलाना गेंदबाजी के सामने उत्तर प्रदेश का कोई भी बल्लेबाज टिक नहीं पाया। जहीर खान ने पहली पारी में उत्तर प्रदेश के 7 विकेट चटकाए और मुंबई की उम्मीदें बढा दी।
अगर रणजी ट्रॉफी के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट में शुरूआत से ही मुंबई टीम का बोलबाला रहा है। अब तक 75 बार हुए इस टूर्नामेंट में मुंबई 42 बार फाइनल में प्रवेश कर चुकी है और यह 38वां मौका है, जब मुंबई ने ट्रॉफी जीतने क कारनामा कर दिखाया है। 1934 में शुरू हुए रणजी ट्रॉफी के पहले टूर्नामेंट में भी जिस टीम ने जीत दर्ज की वह मुंबई ही थी।
1958-59 से 1972-73 के बीच का समय रणजी ट्रॉफी में मुंबई का स्वर्ण युग कहा जा सकता है। यह वह समय था, जब मुंबई ने लगातार 15 बार रणजी ट्रॉफी को जीतकर एक रिकॉर्ड कायम किया। इस रिकॉर्ड को कोई टीम तोड़ना तो दूर, अभी तक इसके पास तक भी नहीं पहुंच पाई है। उस समय कोई भी टीम ऐसी नहीं थी, जो मुंबई के सामने टिक पाए। सिर्फ राजस्थान ही इस दौर में मुंबई के साथ जद्दोजहद करती नजर आई, जो इन 15 सालों में 7 बार फाइनल में मुबंई के साथ भिड़ी। लेकिन एक बार भी इस बीच मुंबई को हरा नहीं पाई।
उस समय मुंबई रणजी टीम के अच्छे प्रदर्शन के पीछे सबसे बड़ा कारण यह था कि इस टीम में आधे से ज्यादा खिलाड़ी ऐसे होते थे, जो भारतीय टीम के लिए भी खेल रहे होते थे। जैसे कि 1968/69 में मुंबई की रणजी टीम में दिलीप सरदेसाई, अजीत वाडेकर, सुधीर नायक, अशोक माकंड और एकनाथ सोलकर जैसे खिलाड़ी थे। दिलीप सरदेसाई जो इस समय मुंबई टीम की कमान संभाल रहे थे, वह भारतीय टीम के भी कप्तान थे। ऐसे खिलाड़ी जब रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट में उतरते थे, तो इन्हें देखकर सामने वाली टीम के आधे हौसले तो मैच से पहले ही पस्त हो जाते थे। इन दिग्गज खिलाडि़यों के अलावा उस मुंबई टीम की बेंच स्ट्रेंग्थ भी काफी मजबूत हुआ करती थी।
मुंबई शुरूआत से ही क्रिकेट का पॉवर हाऊस रहा है। मुंबई ने ही फारूख इंजीनियर, दिलीप वेंगसरकर, सुनील गावस्कर, रवि शास्त्री और सचिन तेंदुलकर जैसे दिग्गज खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को दिए हैं।
लेकिन अब युवा पीढ़ी में बात करे तो बहुत कम ऐसे खिलाड़ी है,जिनमें टेस्ट मैच खेलने का माद्दा नजर आता है। टैलेंट की इस कमी का असर मुंबई के रणजी प्रदर्शन पर भी साफ दिखाई देता है।
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