Sunday, January 18, 2009
सब तो खेल रहे हैं, फिर धोनी क्यों नहीं
जब सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली जैसे दिग्गज खिलाड़ी अपने राज्य की रणजी टीम से खेल सकते हैं, तो फिर धोनी दिलीप ट्रॉफी में ईस्ट जोन के लिए क्यों नहीं खेलना चाहते हैं? कहीं धोनी घरेलू मैचों की उपयोगिता को भूल तो नहीं गए? ये सवाल अहम हैं क्योंकि इन्हीं घरेलू मैचों ने टीम इंडिया के मौजूदा कप्तान के राष्ट्रीय टीम में आने की भूमिका तैयार की थी।
रोहित शर्मा, सुरेश रैना, प्रवीण कुमार, आर पी सिंह जैसे टीम इंडिया के नए रंगरूटों की बात तो छोड़ ही दें, मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर और जहीर खान जैसे बड़े और स्थापित खिलाड़ी भी अपनी टीम को रणजी चैंपियन बनाने के लिए पूरी तरह कमर कसे हुए हैं। दोनों ने सौराष्ट्र के खिलाफ रणजी ट्रॉफी के सेमीफाइन में मुंबई की ओर से शिरकत की और फाइनल में भी उत्तर प्रदेश के खिलाफ अपनी टीम को ताकत देने के लिए तैयार हैं।
राहुल द्रविड़ भी क्वार्टर फाइनल में कर्नाटक की ओर से खेले, तो बंगाल की रणजी टीम को प्लेट डिवीजन से सुपर लीग में पहुंचाने के लिए सौरव गांगुली ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास के बाद भी खेलने से गुरेज नहीं किया। और, इसमें भी शायद ही किसी को संदेह होगा कि वीरेंद्र सहवाग, गौतम गंभीर, ईशांत शर्मा, वीवीएस लक्ष्मण, युवराज सिंह, हरभजन सिंह और अमित मिश्रा की टीमें अगर रणजी ट्रॉफी में आगे का सफर तय करतीं, तो वे भी शिरकत कर रहे होते क्योंकि पाकिस्तान दौरा रद्द हो जाने के बाद भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य फिलहाल खाली हैं।
भारतीय टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी भी खाली हैं (क्रिकेट की व्यस्तताओं से) और छुट्टियां मना रहे हैं। और, ऐसी छुट्टियां मना रहे हैं कि कोई चाहे तो भी उनसे संपर्क नहीं कर सकता। जी हां, यहां तक कि चयनकर्ता भी नहीं। वाकया कुछ यूं है। देश के सबसे बड़े घरेलू टूर्नामेंटों में एक, दिलीप ट्रॉफी 22 जनवरी से शुरू हो रही है, जो 9 फरवरी तक चलेगी। पूर्व क्षेत्र के चयनकर्ता राजा वेंकट चाहते थे कि इस टूर्नामेंट में ईस्ट जोन की टीम की कमान महेंद्र सिंह धोनी संभालें, इसीलिए वेंकट ने धोनी से संपर्क साधना चाहा, लेकिन भारतीय कप्तान ने फोन नहीं उठाया। यहां तक कि जब झारखंड के सिलेक्टर जोध सिंह ने उन्हें मैसेज किया, तो धोनी ने उसका भी जवाब नहीं दिया। हार कर चयनकर्ताओं को पूर्व टेस्ट सलामी बल्लेबाज शिव सुंदर दास को ईस्ट जोन का कप्तान बनाना पड़ा।
अब सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि जब सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली जैसे दिग्गज खिलाड़ी अपने राज्य की रणजी टीम से खेल सकते हैं, तो फिर धोनी दिलीप ट्रॉफी में ईस्ट जोन के लिए क्यों नहीं खेलना चाहते हैं? सचिन ने तो मुंबई की टीम को फाइनल में पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। सौराष्ट्र के खिलाफ सेमीफाइनल में बुखार के बावजूद वे मैदान में रहे और सैकड़ा जमाया।
राहुल द्रविड़ ने भी कर्नाटक के लिए रणजी ट्रॉफी में खेल कर कर्नाटक के युवा खिलाडि़यों का हौसला बढ़ाया। सबसे बड़ा उदाहरण तो भारतीय टीम के सबसे सफल कप्तान माने जाने वाले सौरव गांगुली ने दिया, जो अब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह चुके हैं। लेकिन, इसके बावजूद जब उन्होंने देखा कि बंगाल की टीम को उनकी जरूरत है, तो वह एक बार फिर मैदान पर उतर गए। सौरव की मौजूदगी में बंगाल के युवाओं में जोश भर गया और बंगाल ने गोवा पर जीत दर्ज कर अगले साल के लिए रणजी ट्रॉफी में सुपर लीग के दरवाजे अपने लिए खुलवा लिए।
जहां तक धोनी के झारखंड की ओर से रणजी नहीं खेल पाने की बात है, वह तो समझ में आती है क्योंकि उस समय भारतीय टीम इंग्लैंड के साथ दो टेस्ट मैचों की सीरीज खेल रही थी। जब धोनी अंतरराष्ट्रीय मैचों से फ्री हुए, उससे पहले ही झारखंड रणजी ट्रॉफी का अपना आखिरी मैच खेल चुका था। लेकिन, दिलीप ट्रॉफी के लिए इस तरह की बेरूखी दिखाने का क्या मतलब निकलता है।
अगर आप अंतरराष्ट्रीय मैचों में व्यस्त हैं, तो घरेलू क्रिकेट में उपलब्ध न हो पाने की बात समझ में आती है। लेकिन जब आपके पास समय है, तो किसी घरेलू टूर्नामेंट के लिए उपलब्ध न होना समझ से परे है। धोनी इस समय युवाओं की पहली पसंद हैं। अगर वह किसी घरेलू टूर्नामेंट में हिस्सा लेते हैं, तो युवा क्रिकेटरों में भी जोश आएगा। साथ ही, घरेलू टूर्नामेंटों में दर्शक स्टार खिलाडि़यों को देखने के लिए ही पहुंचते हैं।
पिछले दिनों जब सौरव गांगुली बंगाल की ओर से दिल्ली के करनैल सिंह स्टेडियम में खेलने पहुंचे, तो स्टेडियम में दर्शकों की भीड़ लगी हुई थी। हर कोई सौरव गांगुली की एक झलक देखना चाहता था। दर्शकों के साथ-साथ मीडिया के लोग भी अच्छी-खासी संख्या में मौजूद थे। दादा को देखने के लिए जितने बेताब दर्शक थे, उतने ही बेताब मीडिया कर्मी भी थे।
अगर धोनी दिलीप ट्रॉफी में शिरकत करते तो वहां का भी नजारा कुछ ऐसा ही हो सकता था। लेकिन, शायद धोनी अब सिर्फ अंतरराष्ट्रीय मैचों में ही अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहते है, घरेलू मैचों में नहीं।
उनकी कप्तानी में टीम इंडिया शानदार प्रदर्शन कर रही है। धोनी की ही कप्तानी में भारत ने पहले ऑस्ट्रेलिया और फिर जोश से भरी हुई इंग्लैंड की टीम को वनडे और टेस्ट सीरीज, दोनों में ही धूल चटाई। कहीं ऐसा तो नहीं कि अंतरराष्ट्रीय मैचों में मिल रही इस सफलता से धोनी घरेलू मैचों की उपयोगिता को भूल गए हैं और फिर उनके लिए रणजी और दिलीप ट्रॉफी जैसे घरेलू टूर्नामेंट अब कोई मायने ही नहीं रखते हैं।
दरअसल, किसी भी देश की टीम में प्रवेश पाने के लिए घरेलू और फर्स्ट क्लास क्रिकेट में किया गया प्रदर्शन काफी अहम साबित होता है। इसका एक नहीं, बल्कि सैकड़ों उदाहरण मौजूद हैं। चाहे सचिन हो, सौरव हो, अनिल कुंबले हों, द्रविड़ हों या फिर मौजूदा कप्तान महेंद्र सिंह धोनी, सबने पहले घरेलू क्रिकेट में अपनी चमक बिखेरी और इसी के बूते भारतीय टीम का अभिन्न हिस्सा बने। यह बात क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को याद रखनी चाहिए।
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1 comment:
accha likh rahe ho, lage raho Tilak bhai door tak jaoge,,,,,,
From Nitesh Mishra
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